Saturday, March 16, 2013

गाल बजेनाइ :: उमेश मण्‍डल

गाल बजेनाइ के नै‍ जनैत छथि‍ अपन गामक मास्टर बाबाकेँ बाबा अपन कृति‍केँ कि‍छु बेसि‍ये कए कऽ भरि‍ दि‍न बजैत रहै छथि‍ से बात कोनो नव नै‍। जखन हि‍नका लग बैसब एत्ते धरि‍ जरूर सुनब “फल्लाँ, एस.डी.ओ..., फल्लाँ बी.डी.ओ..., फल्लाँ, अधि‍कारी..., हमरे पढ़ाएल छी वि‍द्यार्थी।” बड्ड गर्व होइ छन्हि बाबाकेँ ई गप्प् बजबा-सुनएबामे। जौं अहाँ हुनक चेहराक आकृति‍केँ धि‍यानसँ देखब, साफ बुझना जाएत, अहुँकेँ हएत- जँए मास्टर बाबा पढ़ेलखि‍न तँए ओ सभ अधि‍कारी बनलखि‍न। मुदा आइ सुबुध मास्टर बाबाकेँ लऽ गेलन्हि ‍सुदूर बाजि‍ बैसला आइ अपनहि‍ सूर- ‘बाबा, सी.ओ., बी.डी.ओ. आकि कलक्टर बनलथि‍ ओ सभ जँए, अहींक वि‍द्यार्थी छेलथि‍हेँ‍ तँए।” मास्टर सहाएब हँ-मे-हँ भरलखि‍न। सुबुध भाय अगि‍ला प्रश्नि दगलखि‍न- “जे चट्टि‍या सभ ओहि‍नाक-ओहि‍ना रहि‍ गेल ओकर भागी के भेल?”

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  2. कवि‍ता-
    गाल बजेनाइ :: उमेश मण्‍डल

    के नै‍ जनैत छथि‍
    अपन गामक मास्टर बाबाकेँ
    बाबा अपन कृति‍केँ
    कि‍छु बेसि‍ये कए कऽ भरि‍ दि‍न बजैत रहै छथि‍
    से बात कोनो नव नै‍।
    जखन हि‍नका लग बैसब
    एत्ते धरि‍ जरूर सुनब
    “फल्लाँ, एस.डी.ओ...,
    फल्लाँ बी.डी.ओ...,
    फल्लाँ, अधि‍कारी...,
    हमरे पढ़ाएल छी वि‍द्यार्थी।”

    बड्ड गर्व होइ छन्हि बाबाकेँ
    ई गप्प् बजबा-सुनएबामे।
    जौं अहाँ हुनक चेहराक आकृति‍केँ
    धि‍यानसँ देखब,
    साफ बुझना जाएत,
    अहुँकेँ हएत-
    जँए मास्टर बाबा पढ़ेलखि‍न
    तँए ओ सभ अधि‍कारी बनलखि‍न।
    मुदा आइ सुबुध
    मास्टर बाबाकेँ लऽ गेलन्हि ‍सुदूर
    बाजि‍ बैसला आइ अपनहि‍ सूर-
    ‘बाबा, सी.ओ., बी.डी.ओ.
    आकि कलक्टर
    बनलथि‍ ओ सभ जँए,
    अहींक वि‍द्यार्थी छेलथि‍हेँ‍ तँए।”
    मास्टर सहाएब हँ-मे-हँ भरलखि‍न।
    सुबुध भाय अगि‍ला प्रश्नि दगलखि‍न-
    “जे चट्टि‍या सभ ओहि‍नाक-ओहि‍ना रहि‍ गेल
    ओकर भागी के भेल?”

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